मिलूं जिस घड़ी नही पहर आया
मिलूं जिस घड़ी नहीं पहर आया
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आशिकी में छोड़ कर घर आया|
ठोकर खा कर मैं तेरे दर आया|
गले लगा लो या छोड़ दो तन्हां,
तेरे पीछे-पीछे चला मगर आया|
प्रेम का तन मन है असर आया|
अंधेरा राहों में तेरी पसर आया|
रहा हैं ढ़ूंढ़ता तुम्हें यूं दर-बदर,
तुझे मैं नहीं पर न नजर् आया|
मनसीरत राह में न शहर आया|
रजनी बीती निकल सहर आया|
वक्त की लकीरें नहीं पकड पाये,
मिलूं जिस घड़ी नहीं पहर आया|
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी लाओ वाली (कैथल)