मिली हैं मुझको दुआयें मेरे हबीबों की
मिली हैं मुझको दुआयें मेरे हबीबों की
मुझे न चाहिए कोई दवा तबीबों की
बहार लौट के आई मचल रही कलियाँ
सुनी है प्यार की आवाज़ अन्दलीबों की
सवाल ख़ास यही सामने जमाने के
मिला जला के है क्या बस्तियाँ ग़रीबों की
कभी मिटी न सदाक़त मगर ज़माने से
करी हैं खेतियाँ इन्सान ने सलीबों की
बता दो पढ़ के मुझे क्या लिखा मुक़द्दर में
लकीरें हाथ में होती हैं जो नसीबों की
सुनो जहान के लोगों सुकूँ से रहने दो
मुझे सुनाओ नहीं बात भी रक़ीबों की
वतन की शान है क़ायम इसी से दुनिया में
मेरे वतन में है दौलत बहुत नजीबों की
अदबनवाज़ बड़ा और सच का शैदाई
यही है बात भी ‘आनन्द’ में अदीबों की
शब्दार्थ:- नजीब= योग्य/प्रतिभावान
– डॉ आनन्द किशोर