मिलन
चाह लिये मिलन की तुमसे करती रोज निहार
जब भी दूँ सन्देश तुम्हें मिलता जाए इनकार
मिल जाए इनकार व्यथित तब मन हो जाता
पल भर तो कुछ समझ न आये फिर रो लेता
प्रातः सूरज पुनः लेता हृदय मिलन नव आस
करउ पूर्ण मम परमेश्वर मत तोड़ो मम विश्वास।।
पल पल हृदय में अक्सर भाव यही आते
प्रतिपल मम प्रीतम तुम्हें देख हम पाते
अंकित मन करवाते हाथ कबहुँ शीश रख देते
मुस्काय मन्द कभी किसी के दुःख भी हर लेते
गहरी आँखे झील समान कमल खिल जाते
देख प्रभाकर जिनको अपनी राह बदल जाते।।
अंदाज कहाँ मानव कह पाए
गुण तेरे कहाँ वाणी गा पाए
जो तुझे जाने वो तेरा हो जाये
और कहीं उसे चैन न आये
तेरा ख्याल तन मन बस जाये
ऐसे ही तुझमे सब खो जाते ….
सुनौ नाथ अब ये विनय हमारी
प्रातः साँझ तुम ही श्वांस हमारी
तुम से नभ वसुन्धरा सब सागर
तेरा प्यार ही ज्ञान की गागर
करो स्वीकार नमन हमारा
मिले मुझे अनुराग तुम्हारा।।