मिलखा सिंह दोहा एकादशी
बीस नवम्बर का दिवस, रहा उनतीस साल
जन्मा हिन्दुस्तान में, मिलखा जैसा लाल // 1. //
जन्मे थे गोविन्दपुर, सिख मिलखा सरदार
नहीं थमी थी उम्रभर, धावक की रफ़्तार // 2. //
हाय विभाजन त्रासदी, छूटा घर-ओ-द्वार
मुश्किल जीवन द्वन्द्व था, टूटे सब आधार // 3. //
देश हुआ आज़ाद जब, छूटा सबका साथ
मात-पिता को खो दिया, मिलखा हुए अनाथ // 4. //
बनके शरणार्थी यहाँ, मिलखा हुए जवान
दौड़ा फौजी रेस में, पूर्ण किये अरमान // 5. //
नये धावकों में सदा, मिलखा रहे मिसाल
हीरा यह अनमोल था, हरदम किया धमाल // 6. //
भाई मिलखा ने किया, देश का प्रतिनिधित्व
वर्ष साठ–चौंसठ रहा, ओलम्पिक नेतृत्व // 7. //
रेस कई जीती मगर, इतना रहा मलाल
ओलम्पिक न जीत सका, भारत माँ का लाल // 8. //
कार्डिफ़ कॉमनवेल्थ में, जीते मिलखा स्वर्ण
यूँ पहचाना विश्व ने, भारत माँ का कर्ण // 9. //
‘फ्लाइंग सिख’ को देखने, उमड़ा पाकिस्तान
मिलखा-मिलखा बोलते, बच्चे और जवान // 10. //
इज़्ज़त भी थी दाव पर, पूर्ण किया अरमान
पाकिस्तानी जीत से, बढ़ी हिन्द की शान // 11. //
• • •
सरदार मिलखा सिंह जी का जन्म: 20 नवंबर 1929 ई. को गोविन्दपुर (अब पाकिस्तान में है।) के एक सिख जाट परिवार में हुआ था। दुर्भाग्य से कोरोना काल में कोरोना की बीमारी से ही इस महान धावक की दौड़ थम गई। सरदार मिलखा सिंह ने 18 जून, 2021 को आखिरी सांस पी.जी.आई.एम.ई.आर. अस्पताल (चंडीगढ़) में अंतिम सांस ली, जिन्होंने रोम के 1960 ई. के ग्रीष्म ओलंपिक और टोक्यो के 1964 ई. के ग्रीष्म ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया था। तेज़ दौड़ने के कारण अवाम ने उन्हें प्यार से ‘उड़न सिख’ (The Flying Sikh) उपनाम दिया। वे भारत के सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ धावक थे। माँ भारती के इस लाल को शत-शत नमन!