मिरे आगे ज़िक्र-ए-अग़्यार क्यों करते हो
मिरे आगे ज़िक्र-ए-अग़्यार क्यों करते हो
ख़ामखां मिरा जीना दुश्वार क्यों करते हो
कभी-कभार मिरी ख़ैरियत पूछ कर तुम
अपना कीमती वक़्त बेकार क्यों करते हो
ये आदत तुम्हारी तुम को सस्ता कर देगी
कोई रूठे तो ख़ुशामद बार-बार क्यों करते हो
मिरे पहलु में बैठा चाँद सिर्फ़ मिरा है
मिरे चाँद का तुम दीदार क्यों करते हो
माँ की दुआओं में तक़दीर बदलने की ताक़त है
बरहमन की बताई बातों पे ऐ’तिबार क्यों करते हो
त्रिशिका श्रीवास्तव धरा
कानपुर (उत्तर प्रदेश)