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12 Dec 2021 · 1 min read

मिथिला

हे विदेह वंशुधारा हे माता,
हे अंग वंशुधारा हे माता ,
हे बज्जि वशुधारा हे माता,
हे जगत जननी हे भाग्य विधाता ,
हे कुलदेवी वन देवी विद्या-देवी हे माता,
हे शायमा देवी पटन देवी उग्रतारा धीमेश्वर
खलारी जानकी हे माता,
नित कट कट अर्हणा गंगा कमला कोशीक हे अनुपम धारा ,
हे भुवन संस्कार संस्कृतिक आचार सदा बान्हु,
लहू अर्पित तोहे ,लख लख परिपन्थी काटू तरूआर तेज आरा ,
हे मातृभूमि पवृित गौरवशाली रंग अहिने पग पग लागै

कविता क कुछ अंश

मौलिक एवं स्वरचित
© श्रीहर्ष आचार्य

Language: Maithili
330 Views

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