मिथिला
हे विदेह वंशुधारा हे माता,
हे अंग वंशुधारा हे माता ,
हे बज्जि वशुधारा हे माता,
हे जगत जननी हे भाग्य विधाता ,
हे कुलदेवी वन देवी विद्या-देवी हे माता,
हे शायमा देवी पटन देवी उग्रतारा धीमेश्वर
खलारी जानकी हे माता,
नित कट कट अर्हणा गंगा कमला कोशीक हे अनुपम धारा ,
हे भुवन संस्कार संस्कृतिक आचार सदा बान्हु,
लहू अर्पित तोहे ,लख लख परिपन्थी काटू तरूआर तेज आरा ,
हे मातृभूमि पवृित गौरवशाली रंग अहिने पग पग लागै
कविता क कुछ अंश
मौलिक एवं स्वरचित
© श्रीहर्ष आचार्य