मिथिला के बदलैत संस्कार…
मिथिला के बदलैत संस्कार…
कि कहु आब मिथिला के संस्कार ,
बदलैत जा रहल अछि अपन व्यवहार ।
गाम-घर,डीह सब भेल अनजान ,
बिसरल भगवती आओर ब्रह्मस्थान।
भेल संक्षिप्त आब मुण्डन,चूड़ाकरण ,
विवाहक संगे-संग चतुर्थी-द्विरागमन ।
रिंग-सेरेमनी मेऽ नाचू और गाऊ ,
विदेशी धुन संगे कमर थिरकाऊ।
देखा-देखी स्वविवेक पर भारी पड़ल अछि,
मेंहदी-हल्दी के आडम्बर सऽ मन हर्षित अछि।
गोसाउनि के गीत सब याद नहिं अछि ,
सोहर-समदाउनि के टाइम नहिं अछि ।
जिंस पर लपेट के धोती व ढेका ,
दुल्हा अचरज में छैथ पाग देख ललका ।
कतऽ विलुप्त भऽ गेल मर्यादक भोज ,
रिसेप्शन में खाउ अहां ! आब स्वरुचि भोज ।
भात भऽ गेल चावल, झोर भऽ गेल ग्रेवी ,
आउटडेटेड भऽ गेल आब,गामघरक जलेबी ।
बदलि जाइत बोलि तऽ बदलैत अछि भेष ,
मिथिला फेर भऽ जायत अप्पन सभक विदेश।
मिथिला के गाथा के आऊ मिलिजुलि गावी ,
विलुप्त होइत परंपरा के हमसभ बचाबी।
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – १७ /११ /२०२१
मोबाइल न. – 8757227201