मित्र
1.
मित्र के सोलह शृंगार
****************
धीर, क्षमावान्, संस्कारी
सुशील, निष्णात, प्रशान्त।
प्रेमी, हँसमुख, सन्तोषी,
मृदुभाषी, वीर, सम्भ्रान्त।
आतिथेय, ज्ञानी, उदार हो
और करे मनुहार।
सखा कहावे वही करे जो
ये सोलह शृंगार।।
2.
क्या नहीं है मित्र
*************
सागर की तरह उच्छृंखल है
सत्य की तरह निर्मल है मित्र।
अंधे का नैन सुख, बधिर का श्रवण
निर्बल का सम्बल है मित्र।।
भिन्न होके भी अभिन्न है
सहज है प्रबल है मित्र।
हितैषी है दूरंदेशी है,
जीवन का प्रभामंडल है मित्र।।
एक और एक दो नहीं
ग्यारह बन कर विश्वास कर
गंगा यमुना है कभी तो
कभी चम्बल है मित्र।।
तू इतना जान ले ‘आकुल’
क्या नहीं है मित्र
हर प्रश्न का उत्त्र है
हर संकट का हल है मित्र।।