*मित्र*
#मित्र#
एक बात कहूं तुझसे प्रियवर,
सुख ढूंढ कहीं, पर ढूंढ सही..
इस जीवन में विस्तृत गम है,
माना खुशियों के मौसम कम हैं!!
लोगों से मिल कुछ मित्र बना,
चक्षु में करूणा के भाव जगा..
उन मित्रों से तू जुड़ता जा,
मानव मन को तू पढ़ता जा!!
जीवन मित्रता की परिभाषा है,
कोरे मन की ये आशा है..
एक बात कहूं तुझसे प्रिय-वर,
सुख ढूंढ कहीं पर ढूंढ सही!!
दूजे रिश्ते मैले हो सकते हैं,
पर मित्र भाव न मैला होता..
मित्रता के रिश्तों में,
निस्वार्थ भाव फैला होता!!
एक बात कहूं तुझसे प्रिय-वर,
सुख ढूंढ कहीं, पर ढूंढ सही!!
जब अंधकार होता जीवन,
कह सकता उससे अंत:मन..
एक मात्र व्यक्ति जो कर सकता,
अपना सुख, तुझपर अर्पण!!
दीप ज्योति करती जो,
ईश्वर के मंदिर को रौशन…
होता मित्र एक दीप भांति,
करता प्रज्जवलित,
अंधियारा जीवन!!
जब मन चोटों से आहत होता,
जीवन में न साहस होता…
कहता वो आलिंगन कर,
जीता क्यों तू,यूँ होंठ सिये..
कष्टों और निराशाओं से तब,
कर देता तुझको दूर प्रिये!!
एक बात कहूं तुझसे प्रिय-वर,
सुख ढूंढ कहीं, पर ढूंढ सही!!
देखो कृष्ण- सुदामा को,
था एक स्वर्ण की खदान,
तो दूजा माटी का बर्तन..
पर दोनों में ना भेद कोई..
जब हृदयों में था सादापन,
न ऊंच नीच का भाव कोई,
मिलते थे उनके अंत:मन!!
सच्चे मित्रों का न मोल कोई,
ऐसे पद का न तोल कोई..
ऐसी क्या अनुभूति कोई,
जो सूने मन को कर दे उपवन!!
एक बात कहूं तुझसे प्रिय-वर,
सुख ढूंढ कहीं, पर ढूंढ सही!!
डॉ प्रिया।
अयोध्या।