मित्र
मित्र!
मित्र सदा माँ शारदे, देती विद्या दान।
तम हर ज्योति भर रही,सतत पूरती मान।।
मित्र पिता साथी शिवा,निसदिन रहते साथ।
सुखमय जीवन कर दिया,पकड़े रहते हाथ।।
मित्र कलम मेरी सदा,कभी न देती घात।
आस भरोसा साथ सब,देती दुख को मात।।
मित्र श्रेष्ठ गुरुजन मेरे, दिया ज्ञान आशीष।
दोहराऊं बांँटूं लिखूं,नित्य नवाऊं शीश।।
मित्र पिता और मात सम, मिले न कोई और।
इक छाया ममता भरी,दूजा सुख का मौर।।
मित्र बड़ी पुस्तक मेरी,सत्संगति का नूर।
अलौकित जीवन करे,भरम भगाए दूर।।
मित्र गगन धरती मेरे,इक छाया इक गोद।
दुलराते पुचकारते,भरते मन तन मोद।।
मित्र चाँद तारक रवि, दें बंधन का ज्ञान।
अनुशासित जीवन करें,समझे मौज सुजान।।
मित्र पेड़ पंछी पवन, कुदरत के वरदान।
सब सुख इनके पास हैं, मौज हुई धनवान।।
मित्र नीर शीतल सदा, सुखमय कल और आज।
भरी गगरिया नेह की, सुखमय करे समाज।।
मित्र मिनी सा कौन है,मौन वफा का मूल।
चौकस रक्षक रात दिन,शांत सौम्य शिव फूल।।
मित्र राह फूलों भरी, सीधा मंजिल तीर।
बाधाओं के बीच में,मित्र बंधाए धीर।।
मित्र महा आनंद सा,सुखमय जीवन सार।
मिले मित्र सच्चा कोई,गहिए बिना विचार।।
मित्र पति प्रिय देवता,लोक सुधारे आप।
मंगलमय जीवन रहे,गहरी प्रेमिल छाप।।
विमला महरिया “मौज”