मित्र होना चाहिए
हमारे इस अनिश्चित जीवन में, ढ़ेर सारी परिस्थितियाॅं विकट होंगी।
कभी रिश्ते दिल से दूर होंगे, कभी मुलाक़ातें दिल के निकट होंगी।
जो सुलभता से घुल-मिल जाए, व्यवहार में ऐसा इत्र होना चाहिए।
भय, निर्णय व संशय की स्थिति में, सबके साथ मित्र होना चाहिए।
जो मित्र का जीवन रोशन करे, बस उसे ही दीये की बाती कहेंगे।
जो दिग्भ्रमित मित्र को रोके-टोके, केवल उसे सच्चा साथी कहेंगे।
मित्रता जीवित रखने वालों का हर महफ़िल में ज़िक्र होना चाहिए।
भय, निर्णय व संशय की स्थिति में, सबके साथ मित्र होना चाहिए।
भाई रावण से आहत विभीषण ने, प्रभु श्रीराम को भेद बताया था।
भेद उजागर होने के कारण, वो वनवासी लंकेश को मार पाया था।
जो हमले से पूर्ण सुरक्षा दे, वो अभेद कवच इर्द-गिर्द होना चाहिए।
भय, निर्णय व संशय की स्थिति में, सबके साथ मित्र होना चाहिए।
तब आगे दूसरे सहयोगी बनकर, श्रीराम को मार्ग में हनुमत मिले।
भक्ति-शक्ति के अथाह सागर, वे स्वामी की आज्ञा पे सहमत मिले।
कभी सेवक, कभी रक्षक, एक दोस्त का ऐसा चरित्र होना चाहिए।
भय, निर्णय व संशय की स्थिति में, सबके साथ मित्र होना चाहिए।
द्वापर में प्रसिद्ध मित्रता की बात, आज तक संपूर्ण सृष्टि करती है।
महलों का वासी झोपड़ी से मिले, ये तस्वीर भाव में वृष्टि करती है।
जो भाव के प्रभाव में रंग उकेरे, ऐसा मनमोहक चित्र होना चाहिए।
भय, निर्णय व संशय की स्थिति में, सबके साथ मित्र होना चाहिए।
जैसे श्रीकृष्ण से मित्र सुदामा, अपने जीवन की व्यथा कहने लगा।
सुदामा की आँखों का हर अश्रु, श्रीकृष्ण की आँखों से बहने लगा।
सुख-दुःख जैसे मनोभाव का, सकल प्रदर्शन विचित्र होना चाहिए।
भय, निर्णय व संशय की स्थिति में, सबके साथ मित्र होना चाहिए।
आज दोस्ती निभाने की सौगंध तो, हर कोई बड़े शौक से खाता है।
वास्तव में, नेक-दिल इंसान ही, किए गए वादों को पूरा निभाता है।
वाणी की तरह वचन व विचार भी, यथासंभव पवित्र होना चाहिए।
भय, निर्णय व संशय की स्थिति में, सबके साथ मित्र होना चाहिए।