मित्र की मित्रता ।
मित्रता अटूट रिश्तों में एक,
अनमोल अमूल्य धरोहर सा,
निस्वार्थ हृदय में पनपता,
दुःख में मित्र ही रुकता,
सच्ची मित्रता यूँ ही दिखता।
यूँ ही दिखता मित्रता का प्रभाव,
धूप में वृक्ष-सा देता है छाँव,
मित्रता होता है ऐसा भाव,
एक उदर से न भी हो जन्मा,
सहचर होता बिन रक्त बंधन का।
बिन रक्त बंधन का मित्र इत्र है,
महक जीवन में संगत का होता,
न कोई छोटा न बड़ा धन से होता
मित्रता बचपन की अद्भुत मजेदार,
साझा होती छोटी-छोटी सी हर बात।
छोटी-छोटी सी हर बात बढ़ाता है विश्वास,
मित्रता दिखती है हर रिश्ते में एक बार,
उम्र का बंधन तय भी नहीं करता,
कब कहाँ कैसे किधर मित्रता हो जाए,
मित्र किस रूप में मिले, अज्ञात है भगवान।
रचनाकार-
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर (उoप्रo) ।