” मित्रता की चादर “
डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
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बात हमें यह कथमपि नहीं सोचना चाहिए कि मित्रता की परिभाषा ही बदल गयी है ! हाँ ,इसका स्वरुप कुछ बदला -बदला सा नजर आने लगा है ! हम मित्रता पहले सीमित दायरों में करते थे ! समतुल्य व्याक्रिओं के डोर से बंधने लगते थे ! पर आज नवीन यंत्रों के माध्यम से हमारी मित्रता सीमित परिसीमाओं में न रहकर सारे विश्व को अपनी बांहों में समेट उसका मधुर आलिंगन कर रही है ! विश्व के तमाम व्यक्ति हमसे छोटे हों ,बड़े हो ,लेखक ,कलाकार ,कवि ,राजनीतिज्ञ ,धर्म गुरु ,संगीतग्य इत्यादि नक्षत्र के तारे बन गए ! आकाश में सब एक साथ चमकते हैं ! इसके अतिरिक्त यह कहना उचित होगा कि मित्रता की कसोटी का स्वरुप प्रायः -प्रायः नहीं बदल सका ! हम अभी भी सामान विचार धारा वाली मानसिकता को अपने मित्र सूची में रखना चाहते हैं ! आपसी ताल मेल .सहयोग की भावना ,आदर सम्मान इत्यादि मित्रता की शाखाएं हैं जो हमें बदलते ऋतुओं में मधुर फल देते हैं ! हमें मित्रता में समर्पण की भावना को बल देना चाहिए ! किसे नहीं यह चाहत होती है कि हमारी लेखनी , कविता , ब्लॉग , प्रतिक्रिया का यश ,सम्मान और प्रसंशा हो ! साथ ही साथहमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारी गलतिओं को इंगित करने वाले हमारे मित्र ही तो हो सकते हैं ! हम अपने मित्रों को अपना गुरु मानते हैं !…………… पर किसी अन्यों के पोस्टों को किसी मित्रों के टाइम लाइन में टैग करना दृष्टता मानी जाएगी ! या हम बिना अनुमति लिए उन्हें किसी खूंटे से बांधना चाहा तो यह मित्रता शायद चनक न जाय ! हमें अपने मित्रों के प्रयासों को भली भांति देखना और परखना है ! आप भी अपनी कृतिओं को बेहिचक भेंजे……. स्वागत है ….मित्र बनाया है …हम आलिंगन करना जानते हैं ! ….मेरी शुभकामना !
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डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
दुमका