मिठास- ए- ज़िन्दगी
ये हयात बड़ी है मिठास
पर अक्सर मानुजों को
इन अनुपम से भुवन में
इसकी माधुर्य की माधुरी
लेने के लिए न आती है
कईयों का इन मधु तक
परे-पृथक तक न वास्ता
वो उद्भव होता जगत में
किसी तरह वो होता बड़ा
सत शादी कर पालते वत्स
फिर इस जहां से चल बसते
मिठास-ए-जिंदगी सतत जीए ।
कुछ लोगों तो जीते जग में
क्षितीश, अवनीश का तरह
जितने पल है उतने पल ही
वो संग- संग ही जिया करते
जिंदगी की मिठास- तितास
सबों को वो उल्लास से जीते
दुस्साध्यों मे वो अकुलाते न
बल्कि डटकर करते धृष्टता
निज शिखर को निखारते…
वो चलते जाते सतत ही
एक दिवा उन्हें मिलती शिखर
मिठास – ए – जिंदगी सतत जीए ।
अमरेश कुमार वर्मा
जवाहर नवोदय विद्यालय बेगूसराय, बिहार