मिट गये हम मग़र बेगुनाही न दी
मुहब्बत की अपनी दुहाई न दी
मिट गये हम मगर रुस्वाई न दी
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क्या गिला ,अब दुशमनों से कोई
ज़ख्मो ने ही मेरे जब गवाही न दी
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रुबारु आईने के भी अब होगा क्या
असली सूरत ही जब दिखाई न दी
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मांगते वो कियूं मुझसे गैरत मेरी
सिक्के ही कुछ दिये हैं खुदाई न दी
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ले गये वो बेशक तिल -2 जान मेरी
मिट गये हम मग़र बेगुनाही न दी
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कपिल कुमार
25/10 /2016