मिट्टी हूँ
# मिट्टी हूँ
मिट्टी हूँ मैं
कहाँ जाऊंगी?
इधर से बह कर
उधर पहुंच जाऊंगी।
ऊपर से उड़ कर
नीचे आ जाऊंगी।
बैठ जाऊंगी नयी जगह
नये पेड़ पत्तों पर।
नये नये रूप में
मैं ढल जाऊंगी।
हर बदलते मौसम की
मार झेल जाऊंगी।
मिट्टी हूँ मैं
कहाँ जाऊंगी?
*** धीरजा शर्मा***