मिट्टी के दिए जलाएं
आयी है दिवाली;
खुशियों में झूमें गाएँ,
पर सारे भैया; मिट्टी के ही;
दिए जलाएँ।
सौंधी-सौंधी माटी की खुशबू; घर अपने भी लाएँ,
आओ मिलकर भैया;
माटी के ही दिए जलाएँ।।
लेकर कुम्हार के दिए;
घर उसका भी रौशन करें,
दो जून की रोटी से वो भी;
परिवार का पेट भरे।
आओ मिलकर इस दिवाली; एक छोटी शुरुआत करें,
राग; द्वेष; बैर; भेदभाव त्याग, प्रेम से सबसे बात करें।
हटा कृत्रिम दियों को;
बिजली को भी बचाएँ,
आओ मिलकर हम;
इस मुहिम को आगे बढ़ाएँ।
मिट्टी के हम हैं;
मिट्टी से ही प्यार करें,
एक छोटा-सा फर्ज़;
इंसानी भी तो निभाएँ।।
चकाचौंध की रातें देखो; बिजली की बर्बादी है,
देख-देखकर खुश होते हैं;
ये कैसी आजादी है।
देशहित की ख़ातिर;
शुद्धता को हम अपनाएँ,
मिट्टी के दिए जलाकर;
मन को शुद्ध करें कराएँ।।
पढ़े-लिखे हैं फिर भी; पर्यावरण की चिंता न करते,
अनाप-सनाप मनमानी करके;
प्रकृति को रुलाते हैं।
धीरे-धीरे हम ही; धरती का ताप बढ़ाते हैं,
आओ इस दिवाली; मन का वहम मिटाएँ।।
आयी है दिवाली……..
आओ मिलकर भैया……
©अनिल कुमार “निश्छल”
ग्राम-शिवनी,
विकासखंड-कुरारा,
जिला-हमीरपुर
(उ०प्र०)