मिट्टी का एक घर
मिट्टी का एक घर है मेरा,
बरसात की चाहत रखता हूं!!
कलेजा देख तो मेरा,
मैं इसी तरह हर रोज़,
मुसीबतों का सामना करता हूं!!
आंखें ज़रूर नम हो जाती है,
बरसात के भीगे मौसम में,
बोझल पलकों से निकले आंसू,
दिल में सीधे कटार सी उतर जाती है!!
मिरे हौसलों के आगे ये बरसात क्या है?
तू गरज, तू बरस तेरी औकात ही क्या है?
सर पे ये छत ही मेरा एक सहारा है,
बस तुझको ही मेरी खुशियां गंवारा है,
ये घर मेरा है मिट्टी का,
हर सांस मैं लुटाऊंगा,
अपना फर्ज़ निभाऊंगा!!
मैं इसी तरह हर रोज़,
मुसीबतों का सामना करता हूं!!
छप्पर सजाकर हर रोज़,
एक नया इतिहास रचता हूं!!
©️ डॉ. शशांक शर्मा “रईस”