मिटाना है
शुभ साँझ
यूँ ही …चलते चलते
मुमकिन सब है यहाँ ,
यह किसे बताना है
आदतों का गुलाम ,
आज तो जमाना है।
झुकने की नहीं आदत ,
झुकाना सीख लिया ।
बड़ा बेदर्द है देखो
कैसा यह जमाना है ।
बदरंग हुये रिश्ते सभी
किसी को किसी से गर्ज कहाँ।
बेशक टूट जायें जड़ों से ,
साथ नहीं निभाना है ।
प्यार का बंधन ,दिलों का संबध
गुजरते वक्त की निशानियाँ ।
हर हालात में इनको अब तो
.. मिटाना ही मिटाना है।
पाखी जैन