माहौल
माहौल
शब्द शब्द धरा धरा
ये है मेरी वसुंधरा
आक्रांत विप्लव गान चला
बह गई सारी सुधा
निशी से निशाचर गए है उड़
उफ़ ये कैसा ताल बजा
सुधीजन, गणमान्य है खड़े
कैसे वो नृहंस बना,
यज़ा यज़ा उदघोष ध्वनि,
मन में कैसा ये शोर मचा
ताल से ताल बिगड़ने लगी
नये ही फैशन का ज़ोर चला।
रुदन, घृणा, ग्लानि
अब ना रही वो पहले सी क्रांति,
बिगुल बज उठा,रणभेरीं ने हुंकार भरी
उठो मूकों बधिरों अब ना गलेगी दाल कहीं।
अब ना गलेगी दाल कहीं
डॉ अर्चना मिश्रा