मासूम ही तो है
मासूम ही तो है, पर आवारा नहीं है
इश्क़ में नाकाम है पर बेचारा नहीं है
लोग इलज़ाम तो लगा देते अक्सर
दिल ही तो है अपना बेचारा नहीं है
घुटता रहता है बदनामी सहता है ये
बेचारे को मिलता कोई सहारा नहीं है
लाखों दाग इसपर लगते देखे इसने
दाग़ों से पाया इसने छुटकारा नहीं है
अपने जज़्बों को जगाये रखता यह
आंधी तूफानों के आगे ये हारा नहीं है
अशोक की आँखें भर आईं मेरे दिल
बिन तेरे एक भी दिन गुजारा नहीं है
औरों के दुःख दर्द पे हमदर्दी दिखाता
इंसानियत को इसने अभी नकारा नहीं है
अशोक सपड़ा हमदर्द की क़लम से दिल्ली से