मासूम और यौन हिंसा
हर एक मासूम नज़रों में, सपने सुनहरे हैं
बचाएं बुरी नजरों से, भेड़िए हर जगह बैठे हैं
यौन लिप्सा में बच्चे,आंसा शिकार होते हैं
पापी और वहशी दरिंदे,शरीर और आत्मा रौंद देते हैं
नोंच काया फूल सी,क्षत बिक्षत करते हैं
घायल आत्मा को कर, बर्बरता करते हैं
किस पर विश्वास,किस पर कर लें भरोसा
समझते हैं जिन्हें अपना,वे कातिल निकलते हैं
बचाना है बच्चों को, सजगता ही साधन है
बढ़ रही यौन हिंसा से, सारी दुनिया में मातम है
सुरेश कुमार चतुर्वेदी