मार मंहगाई की (हास्य व्यंग्य)
आया इतवार
ठंड थी
सिरहन सी
जरूरत थी
चाय की
सोचा बीवी लाती
होगी चाय
” लो थैला ,
जाओ सब्जी मंडी
लाओ प्याज
टमाटर भिड़ी
सेव अनार
चिकू संतरे
और भूलना नहीँ
अमरूद
हाल जो देखा
सब्जी मंडी का
उड़ गये होश,
बचे होते होते बेहोश
प्याज रूपये सौ
टमाटर रूपये पचास
देखा मंडी का हाल
मंहगाई की मार
जेब बेहाल
दिये थे बीवी ने
रूपये सौ
सामान आना था
रूपये आठ सौ
ऊधारी में
लिया माल
पहुँचे घर
उठाये सब्जी
किया बीवी ने
सीधा वार
गये थे मंडी
किस पडौसन
के साथ
जो लूट लाये
सब्जी मंडी
बहुत दिये
तर्क बितर्क
नहीँ बनी
बात बिल्कुल
बीवी पहुँच
गयी है मायके
रहेगी याद
ये सब्जी मंडी
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल