मायूस
फूल उगते नहीं उगाए जाते है,
चराग़ बुझते नहीं बुझाए जाते है।
हम जो तुम्हें मायूस दिख रहे हैं,
वो ग़म-ख़्वार है जो बुझ गए है।
मिलो किसी से तो मुस्कुराकर मिलते हैं,
राज एक उस हसीं में छुपाकर मिलते हैं।
ना कुछ पाने की हसरत रखते हैं,
ना ही कुछ खोने का गम रखते हैं
जो मिला बस उसमें सब्र रखते हैं।
इश्क के दरिया में जब डूब जाओगे
ज़िंदा-दिली न इनकी समझ पाओगे।
मुकम्मल राहों में जब, मुकम्मल सा नहीं होगा
उस वक़्त तुम्हें एक सच महसूस होगा।
© अभिषेक पाण्डेय अभि