मायावी संसार
मायावी संसार
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मन को चैन मिले,तू भजन गाता चल,
पथ में जो मिले, उसे गले लगाता चल,
आंधी आए,चाहे तूफान आएं तुम नहीं डरना।
अपनी मंजिल पर जाकर, ही तुम रूकना।।
इस संसार में कौन अपना, कौन पराया,
इस जग में क्या तेरा,और क्या मेरा ,
क्या लेकर आये थे, क्या लेकर जाओगे
अकेले ही आये थे, और अकेले ही जाओगे।
मत कर अभिमान, अपने धन, दौलत पर,
सब यहीं रह जाना, बन्दे प्रभु से डर।
ये दुनिया चार दिनों का मेला, सबसे प्रेम कर ले,
मन से नफ़रत, ईर्ष्या मिटा, प्रेम ज्योति भर ले।
ये ऊंची हवेली, मीनारें,सब यहीं रह जाना है,
तेरे नेक काम और पुण्य साथ में
जाना है।
मालिक के घर सबका ,लेखा, जोखा
होता है,
किसने कितने फूल चुने,किसने कांटे
बिछाये हैं ।
सुमिरन कर ले मानुष,राम भजन तर
जायेगा,
भव सागर से पार, तभी तू पायेगा।
डूबती तेरी कश्ती को, वही पार लगायेगा ,
डगमग होती नौका का , प्रभु खैवनहार बन जायेगा!!!
सुषमा सिंह*उर्मि,,