मानसून
टपटपाटप गिरती बूंदे कितने सुर में गा रही हैं
गड़गड़ाहट बादलों की क्या गज़ब सँग ढा रही हैं
सनसननसन सा पवन का भी घुला संगीत ऐसा
छमछमाछम कल्पनायें नृत्य करती जा रही हैं
भीग तन मन दोनों ही बरसात में ऐसे गये अब
छटपटाती कामनाएं फिर से मन पे छा रही हैं
खिलखिला धरती रही है ओढ़ कर धानी चुनरिया
इंद्रधनुषी ये छटाएं कितनी मन को भा रही हैं
मस्त तन मदहोश मन है खोई खोई भी कलम है
‘अर्चना’ से प्रीत नग्में उंगलियां लिखवा रही हैं
26-06-2019
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद