मानसून को हम तरसें
आग चहुँदिश बरस रही,
इस गर्मी से हम बेहाल।
कब बरसेंगे बादल हमपर,
मानसून का हम करें इन्तजार।
टप-टप करके बहे पसीना,
गीली पीठ है गीला सीना।
इस गर्मी की मार है भारी,
सुख चैन सब इसने छीना।
कुछ भी काम नहीं अब आता,
कूलर पंखा सब है बेकार।
कब बरसेंगे बादल हमपर,
मानसून का हम करें इन्तजार।
पानी पी-पी पेट भर गया,
बुझती नहीं है फिर भी प्यास।
जब भी थोड़े बादल छाते,
बारिश की होती है आस।
तेज हवा के चलते झोंके,
और गिरती बस कुछ बौछार।
कब बरसेंगे बादल हमपर,
मानसून का हम करें इन्तजार।
अपने जीवन में भी ऐसे,
जब दुःख की गर्मी आती है।
मन का ताप बढाती है और ,
दिल को बहुत दुखती है।
ऐसे में बस दिल ये चाहे,
मिल जाये बस थोड़ा प्यार।
कब बरसेंगे बादल हमपर,
मानसून का हम करें इन्तजार।
सुख के मानसून जब आकर,
करते दिल पर प्यार की बारिश।
मिट जाता है हर एक गम और,
पूरी होती दिल की ख्वाहिश।
फिर तो लगता हर एक दिन,
जैसे खुशियों का हो त्योहार।
कब बरसेंगे बादल हमपर,
मानसून का हम करें इन्तजार।