मानव हमारी आगोश में ही पलते हैं,
मानव हमारी आगोश में ही पलते हैं,
लाख धेले खाकर भी हम फलते हैं।
कटान देख, बहते वृक्ष के आँसू,कहते,
अंतिम चिता तक हम ही साथ जलते हैं।
—–अशोक शर्मा
मानव हमारी आगोश में ही पलते हैं,
लाख धेले खाकर भी हम फलते हैं।
कटान देख, बहते वृक्ष के आँसू,कहते,
अंतिम चिता तक हम ही साथ जलते हैं।
—–अशोक शर्मा