मानव समाज की हालत पर मंथन
मानव समाज की हालत पर
मंथन
अब बदल गया भेष भुषा
मिट गया माथे का चन्दन
हाथ जोड़कर विनती करत
संस्कार जगाने, करें मंथन
पलट गया है वक्त अब
जन-मानस की सोच
जनता जनार्दन सोचिए
सत्य समय की खोज
आज रो रही है गौ माता
कर हृदय करूण क्रन्दन
सुहागन श्रृंगार बनकचरा
न दिख रही माथ में बंदन
न परवाह कभी मर्यादा की
न बुजुर्गो का करते सम्मान
क्या सोच रही पढ़ी लिखी
खुद होती है जग बदनाम
अपना कर नीति डलहौजी का
बना रखी है श्रृंगार का लंदन
भारत भुमि का संस्कार मिटा
संस्कृति सभ्यता का कर खंडन
पति पत्नी पर अब विश्वास नहीं
लगी भ्रम भूत का भयंकर रोग
अब नर नारी दोनों प्रताड़ित है
करूण क्रन्दन कर रहे हैं लोग
अनपढ़ रहे थे जब लोग बाग
कुट कुटकर सभ्यता भरी थी
निज पति को परमेश्वर समझ
बांह भर चुड़ियां अड़ी पड़ी थी
प्रताड़ित होकर भी नारियां
कभी न छोड़ी थी ससुराल
शिक्षित नारी होकर भी,अब
खुद बनी निज पति का काल
हो रहा प्रताड़ित पति अभी
करत फिरे है करूण क्रन्दन
संस्कार जगाने कीजिए अब
हिन्दू संस्कृति सभ्यता मंथन
किसने की संविधान सुधार
नारी को दी स्वतंत्र
पति के रहते पति रख ले
नारी नही है परतंत्र
संविधान भारत में बना दिया
नही नारी पर कुछबन्धन है
आदिशक्ति अब नारी जागो
क्या भारत भुमि भी लंदन है
कवि विजय के दिल पर
इसी बात का मंथन है
तुम्हीं बताओ नारी शक्ति
क्या भारत भुमि भी लंदन है
समीक्षा हेतु मार्ग दर्शन कीजिए,आप सबके मंथन हेतु लिखा गया है , आज पति-पत्नी के बीच होने वाली दरार को दुर कर, बिखेरते परिवार को बचाने लिखने का प्रयास है न की नारी जगत या पुरुष समाज को किसी प्रकार झुकाने का नहीं गलती हो तो क्षमा करें
विनित
डां विजय कुमार कन्नौजे अमोदी आरंग ज़िला रायपुर छ ग