पृथ्वीराज
सिंह की सी गर्जना है
चीते की सी चपल चाल
गज को भी रण मे पछाड़ दे
पृथ्वीराज एक नाम
अजयमेरू उसका धाम
शौर्य का अद्वितीय प्रमाण है
अल्पायु बडे काज
पूरे हिन्द पर था राज
शत्रु को भय से परास्त दे
जीत लिए कई जंग
भय से परे थे ढंग
किसकी थी मजाल जो ललकार दे
गौरी को था बडा मान
बल का अपने अभिमान
चाहे पृथ्वीराज को उतार दे
कई युद्ध लगातार
हार हुई बारबार
क्षत्रिय धर्म सदा जीवनदान दे
छूटी नही उसकी आस
जयचंद का मिला साथ
अजय अजमेरू को भी भेद गए
क्रूर बन कर किया नाश
तप्त लौह से भेदी आंख
सिंह को सलाखो मे बांध गए
चंदर ने फिर खेली चाल
गौरी से यह खोला राज
शब्द भेद बाण को निहार ले
चार बांस चौबीस गज
दूर बैठा था सुल्तान
एक बाण से भेदा चौहान ने
पृथ्वीराज की यह बात
सदियो से करे है राज
सब यह मिलकर पुकार दो
शीश ना झुके कभी
देश पर मिटे सभी
प्राणो को तुम देश पर वार दो
संदीप पांडे”शिष्य”