मानवता
मानवता
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जाने किस मद में चूर है तू
तूने ये क्या कर डाला है
अच्छे खासे परिवार को तूने क्यूं
पूरा तहस नहस कर डाला है?
कहते हैं एक नारी ही है
जो घर को स्वर्ग बनाती है
बात भी ये क्या अब तू भूल चुकी है
क्या अहम है जिसमें डूब चुकी है?
कहते हैं पढ़ने लिखने से
इंसां में बड़प्पन आता है,
पर तेरे इस कृत्य के कारण आज
मानवता तक शर्मिंदा है।
कहते हैं सब रिश्तों से ऊपर
ये दोस्ती का खूबसूरत रिश्ता होता है,
एक मदमस्त नारी के कारण तूने क्यूं
इस रिश्ते को कलंकित कर डाला है?
अंतर्मन मेरा आज इसकी पीड़ा से
बस घायल होकर बैठा है
क्या तुझको जरा भी दर्द हुआ ना
तूने जो ये सब कर डाला है?
हंसने खेलते परिवार को मेरे
नजर बुरी लग गई है किसी की,
क्या इस बगिया में फिर से
प्यार के फूल खिला पाएगा कोई?
जो बात गलत है गलत रहेगी
दंभ रिश्तों का चाहे जितना भर ले,
हो सके तो रिश्तों को संभाल लेना
क्यूं पाप का भागी बनता है?
संजय श्रीवास्तव
बालाघाट( मध्य प्रदेश)