मानवता का वृक्ष
किसी के लिए खोदा है गढ्डा ,
तो खुद भी उसमें गिरोगे ।
आग लगाई किसी के घर ,
तो खुद भी तो जलोगे ।
कांटे बिखेरे हैं किसी के लिए ,
तो तुम्हें फूल कहां से मिलेंगे ?
अर्थात जिसको भी तुम जो दोगे ,
वही वापिस तुमको मिलेगा ।
बल्कि दुगुना ही मिलेगा ।
नफरत दोगे ,तो नफरत मिलेगी ।
बैर की बेल भी इसी तरह फैलती है।
तो क्यों न किसी के लिए शुभ विचार रखो ,
और प्रेम बांटो ।
बदले में तुम्हारा भी भला होगा ,
और दुगुना प्यार मिलेगा ।
तो बिगड़ता क्या है तुम्हारा सत्कर्म से ?
दुनिया के गुलशन में मानवता का वृक्ष
इसी तरह से ही तो बढ़ेगा और खिलेगा ।