*मानपत्रों से सजा मत देखना उद्गार में (हिंदी गजल/
मानपत्रों से सजा मत देखना उद्गार में (हिंदी गजल/गीतिका)
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(1)
मानपत्रों से सजा मत देखना उद्गार में
देखना हो जब किसी को देखना व्यवहार में
(2)
हर तरफ धनवान के बस पुण्य की चर्चा रही
पाप उसके छुप गए सब स्वर्ण के आगार में
(3)
काश जाते साइकिल से नवयुवक बाजार में
हर जगह पर बाइकों का है चलन बेकार में
(4)
चेहरा या शक्ल तो भगवान का होता नहीं
पूजते पाषाण अनगढ़ इसलिए आकार में
(5)
जूझते सैनिक के जैसे सत्य के व्यापार में
जोखिम उठाते लोग हैं कुछ इस तरह अखबार में
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रचयिता : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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