मानते हैं जानते हैं __ गजल/ गीतिका
मानते हैं जानते हैं ,चिंतन को जब खंगालते हैं।
कितने ही बने प्रेरक ,फिर भी लोग बातें टालते हैं।
इतना ही कहना सीख लिया खुद को ही जीत लिया,
जितना हो सकता है, स्वयं को संभालते हैं।।
जमाना बहुरंगी है, कहीं तंगी तो कहीं चंगी है।
समरसता के रंग में रंगे हैं, बस इतना जानते हैं।।
भूल से भी भूल न कर बैठे न किसी से एंटे।
बोलने से पहले हर बार जबान संभालते हैं।।
न किसी की राहें रोकते, जो हमें समझते उन्हें टोंकते।
नहीं सुनता जो कोई हमारी, उन्हें कहां पुकारते हैं।।।
“अनुनय” जब तक यह जीवन और रहेगा तन।
स्वप्न निर्मलता के ही चलो मन में पालते हैं।।
राजेश व्यास अनुनय