माथे की बिंदिया
मैं वासना का कामजनित रूप हूँ
प्रेमियों को रिझाने की अतृप्त चाह हूँ
मैं लाली हूँ, होंठो की लाली.
पर जब देखती हूँ मैं-
आत्मिक-प्रेम के क्षणों मे
तुम ही चूमें जाते हो,
तब मैं उपेक्षित हो मुँह बना लेती हूँ और सोचती हूँ-
ऐसा भी क्या है तुझ माथे की बिंदिया में?
पंकज बिंदास