* माथा खराब है *
डॉ अरुण कुमार शास्त्री // एक अबोध बालक // अरुण अतृप्त
माथा ख़राब है अजि मेरा माथा ख़राब है
मुझसे मत उलझना मेरा मन बेताब है।।
स्वभाव से हूँ कोमल कर्म से सजग
इंसान के कर्तव्य सा एक दम कड़क
चूक जाना मेरे लिए मरण के समान है
मंजिल पर नजर यही मेरा निशान है
जबसे हुआ हूँ पैदा मैं जिंदगी से लड़ रहा
अपने पूर्व कर्म का मैं हिसाब सब दे रहा।।
जानता हूँ पागल नहीं हूँ प्रारब्द्ध की दिशा
क्या किये थे कार्य अज्ञान से तब न था पता
मन वचन और कर्म का बेढव हिसाब है
माथा ख़राब है अजि मेरा माथा ख़राब है।।
फेरिस्त क्या करेगी मुआफ़ी भी न मिलेगी
भुगतूँगा सिलसिले से अब ये ही अजाब है
माथा ख़राब है अजि मेरा माथा ख़राब है
मुझसे मत उलझना मेरा मन बेताब है।।
उल्फ़त के लुत्फ़ का साहिब स्वाद है गज़ब
जिसने चख़ा नहीं , तो वो शख़्स है अज़ब।।
एक एक पल मेहबूब के साथ का देता बड़ा मज़ा
हैरान क्यूँ है अब जो तुझको मिल रही सज़ा।।
माथा ख़राब है अजि मेरा माथा ख़राब है
मुझसे मत उलझना मेरा मन बेताब है।।
*बालक अबोध हूँ, मैं, मुझको तो होश ही नहीं
कर दिया सो कर दिया, अब सोचता जरा ।।
कथनी और करनी की सुनी कथा खूब है
संभव न हो सका कोशिश भी करी खूब है
तर बतर पसीने से फिर भी थका नहीं तनिक
बस मेहनत ही मेरा राम है और मिरा खुदा ।
माथा ख़राब है अजि मेरा माथा ख़राब है
मुझसे मत उलझना मेरा मन बेताब है।।