मातृभूमि
निर्भीक वीर खड़ा रणभूमि में
जान की ही बाजी लगाने को
मातृभूमि के टुकड़े टुकड़े को
वापस अपने घर में लाने को
अकिंचन वह भयभीत कहाॅं है
आज शीश अपना कटवाने को
फिर भी दिल में तो शोर मचा है
आज समग्र अपना लुटवाने को
सैनिक बनकर जनम लिया है
कभी प्राण गंवाना पड़ सकता
मातृभूमि जब भी आवाज देगी
लहू अपना बहाना पड़ सकता
पर किसी मूल्य पर तैयार नहीं
मातृभूमि की नाक कटवाने को
वह तो सौ सौ बार जनम लेगा
अपने माॅं की लाज बचाने को