मातृभूमि का श्रृंगार करो
मातृभूमि का श्रृंगार करो
आज़ादी के पावन दिन पर, मातृभूमि का श्रृंगार करो
देश ध्वजा का संदेश यहीं, वैर भाव का संहार करो।।
जो मिट गए, जो खो गए,
हाथ थाम तिरंगा सो गए,
हँसते – हँसते फंदे चूमें
मरते मरते भी वो झूमें,
तुम ना भूलो उनकी गाथा,
वीरो का तुम गुणगान करो,
मातृभूमि का श्रृंगार करो !!
*
नंगे तन पर कोड़े खाकर,
खायी गोरो की गालियाँ
भारत माता की खातिर,
खायी सीने पर गोलियां
तब जाकर के मुक्ति मिली
आज़ादी का सम्मान करो,
मातृभूमि का श्रृंगार करो !!
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मृत्यु वरण किया लाखो ने
जीवन मरण हुआ लाखो ने
फिर भी ना थे रुकने वाले,
थे आज़ादी के मतवाले,
स्वाधीनता के समर को
तुम यूँ न बदनाम करो !
मातृभूमि का श्रृंगार करो !!
आज़ादी के पावन दिन पर, मातृभूमि का श्रृंगार करो
देश ध्वजा का संदेश यहीं, वैर भाव का संहार करो।।
!
स्वरचित : डी के निवातिया