मातु पिता जीवन निधि पावन ।
मातु पिता जीवन निधि पावन
कोई कष्ट मिलै जबहीं जन कौ,
लगै मातु पिता बस टेर मचावन
नीको न लगै जग मैं कछु और
लगे पितु मात के अंक निहारन
मिलि पायो सदा सुख है मन मैं
सच सार जहै करि देखौ विचारन
अनुराग को राग है आज जहे
हैं मातु पिता जीवन निधि पावन।
मातु पिता सर्वोपरि राखि के
अग्रज देव कहाये गजानन
मर्याद रखी प्रभु राम जु ने
बनवास को धाये के मारे दशानन
सेवा जो करे नित मातु पिता की
सो नाम करै चहुँ ओर प्रसारन
बढि के न कछू पायो जग मैं,
भिरमे बहु देश विदेश मंझारन ।
अनुराग दीक्षित