माता पिता
माता पिता
मा की सुर्खी बिंदी की चमक से लेकर
बच्चों के सर की छाव होते हैँ पिता ।
मा गर सार है ममता का
तो मातृत्वा का आधार हैं पिता ।
ढाल बन जाती हैँ दुआएँ मा की
तो हौसलों की तलवार बन जाते हैं पिता ।
बेशक़ होती है ताकत हर गुनाह को छुपाने की मा के आँचल में
देकर सज़ा ज़िंदगी का सबक सिखाते हैँ पिता ।
रसोई की अन्नपूर्णा मा
तो परिवार का सरताज होते हैँ पिता ।
सब्र की परिभाषा मा
तो स्वाभिमान की मूरत होते हैँ पिता ।
परिवार की शक्ति मा
तो उस शक्ति के शिव हैँ पिता ।
ईश्वर रचित इस नायाब दुनिया में
मेरे स्वर्ग से घर में भगवान की मूरत हैँ मा और पिता ।
– रुपाली भारद्वाज