माता-पिता कैसे लगाएं बच्चों में बढ़ते अपराध एवं शोषण पर अंकुश
माता-पिता कैसे लगाएं बच्चों में बढ़ते अपराध एवं शोषण पर अंकुश
हर रोज अखबार समाचार-पत्रों, मीडिया व कई टीवी चैनलों में बच्चों में बढ़ रही आपराधिक मानसिकता और उन पर हो रहे शोषण को एक प्रमुख सुर्खियां बना कर दिखाया जाता है I इसे कई टेलीविजन चैनल काफी बढ़ा चढ़ाकर दिखाते हैं और तो और एक ही दृश्य या खबर को कई बार जोर जोर से अपनी वाणी का प्रभाव बदल कर कहा जाता है। हालांकि इसका उद्देश्य लोगों का ध्यान आकर्षित कर अपने चैनल के लिए सुर्खियां बटोरना होता है। खबर चाहे उस बच्चे के मान-सम्मान को ही क्यों ना भंग कर दें।फिर यह कतई नहीं सोचा जाता कि उसके माता पिता पर क्या बीतेगी।कौन है इसके जिम्मेदार? आइए, कुछ पहलुओं पर प्रकाश डालते हैं जो समाज में व वर्तमान पीढ़ी के बच्चों में बढ़ रहे अपराध के लिए जिम्मेदार हैं।
(1) आज माता-पिता अपने व्यवसाय में इतने व्यस्त हैं कि उनके पास इतना समय नहीं है कि वह अपने बच्चों के साथ कुछ समय अकेले व्यतीत करें और उनकी समस्याओं पर विचार करें। संयुक्त परिवारों का विघटन भी इसका मुख्य कारण है। संयुक्त परिवार में सभी लोग मिल जुल कर रहते हैं। जिसमें तीन तीन पीढ़ियां आपस में साथ साथ रह कर एक छत के नीचे अपना समय व्यतीत करते थे। घर के प्रांगण को ही खेल का मैदान एवं घर के सदस्य ही उसके खिलाड़ी बन जाते थे। इन परिस्थितियों में वर्तमान की तरह बच्चों में अकेलापन दिखाई नहीं देता था।
(2) बच्चों में वर्तमान तकनीकी ज्ञान, इंटरनेट के बढ़ते प्रयोग और सामाजिक मीडिया ने गहरी छाप छोड़ी है। अगर मेरी माने तो इन्हें अपराधों एवं कई अन्य कुसंगतियों की जननी कहना गलत नही है। बचपन से ही बच्चा हिंसक कार्टून चैनलों को देखने लगता है उसे लगता है कि वह उसे पसंद करता है और अभिभावक यह सोचते हैं कि बच्चा किसी कार्य में व्यस्त था बनाए हुए हैं लेकिन वह इस बात से अनजान है कि छोटे भीम, डोरेमोन और शिवा जैसे कार्टून को की छाप उस बच्चे ने अपने मन में बैठा ली है। वह भी उसी तरह की मानसिकता में ढलता जा रहा है। उसने अपने जीवन में बाल्यकाल की मौज मस्ती को छोड़कर एक ऐसे पात्र को अपना आदर्श बना लिया है जो समाज में दुश्मनों से लड़ता रहता है। घर पर भी वह बच्चा इसी तरह का व्यवहार करता है।
(3) आज माता-पिता के साथ टेलीविज़न देखते समय उसके मन में कई सवाल उठने लगते हैं कि फिल्म एवं गाने में आए हुए सीन को देखकर माता पिता ने चैनल क्यों बदल दिया? बच्चे उन्हीं अदाकारों को अपना आदर्श मानने लगे हैं जो ज्यादा अश्लीलता एवं अभद्र भाषा का प्रयोग करते हैं। एक तरफ सरकार द्वारा इन दृश्यों पर प्रतिबंध नहीं लगाया जाता, जिसे स्वयं पिता-पुत्र एक साथ नहीं देख सकते। दूसरी तरफ उन्हें ऐसा करने से मना किया जाता है।आज अश्लीलता इस कदर है कि शरीर पर कम वस्त्रों को खूबसूरती माना जाने लगा है। बच्चे भी उसी मानसिकता के शिकार होते जा रहे हैं। नन्हें-नन्हें कलाकारों को प्रेमजाल में दिखाना बच्चों की मानसिकता को बदल रहा है।
(4) आधुनिक दौर में अपने बच्चों को महंगा मोबाइल देना और बड़ी से बड़ी गाड़ी देना माता पिता के लिए समाज में प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है। क्या भी जानते हैं कि इसके क्या दुष्परिणाम होंगे?क्या वह समझते हैं कि बच्चे केवल शैक्षिक ज्ञान का ही इन उपकरणों से अर्जन करेंगे?यह तो वही बात हो गई कि हमने एक अपरिपक्व बच्चे को गलत उपकरण थमा दिया जिसका परिणाम उसकी सोच से परे है। ऐसा देखा गया है कि बच्चा पार्क में घूमने की बजाए मोबाइल में फेसबुक,व्हट्सएप्प चलाना ज्यादा पसंद करता है। छात्र-छात्राएं आपस में अश्लील फोटो भी शेयर करने से भी नहीं हिचकतें।जब बात हद से ज्यादा हो जाती है तो इसके लिए बच्चों को दोषी ठहरा दिया जाता है। लेकिन एक बार स्वयं आकलन करके देखें कि कही इसके जिम्मेदार हम तो नहीं? उसे यह रास्ता दिखाना और इतनी सुविधा मुहैया कराना क्या हमारा फर्ज था? क्या इन उपकरणों की जगह उनके साथ बैठकर ज्ञान नहीं दिया जा सकती थी? आख़िर दूसरों को दोष देना बहुत आसान है। लेकिन अगर एक फिल्म की भांति फ्लैशबैक में जाकर देखें तो हमें पता चलेगा जो सुविधाएं हमने दी बच्चे ने उसी का दुरुपयोग किया। ऐसे में सवाल उठता है क्या हम सुविधाएं देना बंद कर दें?जवाब अगर आप मुझसे पूछें तो मैं कहूंगा, नहीं। सुविधाएं जरुर दें लेकिन अगर आवश्यकता है तो बच्चे को उनके सही एवं गलत के बारे में सही मार्ग दर्शन,सलाह एवं लगातार संपर्क में रहकर उन पर नजर रखने की ।
आज समाज में बढ़ती इस समस्या के निदान हेतु एक अभिभावक के तौर पर मैं कुछ बिंदुओं पर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहूंगा, जो हमें माता-पिता होने का बोध कराएगा और साथ-साथ अपनी जिम्मेदारियों से विमुख नहीं होने देगा। माता-पिता के कुछ प्रमुख कर्तव्य एवं जिम्मेदारियों से बच्चों के शोषण एवं आपराधिक मानसिकता पर लगाम लगाई जा सकती है।
1. बच्चों को समय समय पर सही और गलत का ज्ञान अवश्य दें।
2. बच्चों को परिवार के साथ समय व्यतीत करने के लिए कहें।
3. उन्हें ज्ञान,भक्ति संस्कार और पारिवारिक टीवी सीरियल देखने के लिए क
4. उन्हें घर पर अकेलापन महसूस ना होने दें। अगर ऐसा प्रतीत हो तो सिर्फ एक मित्र बनकर उसके साथ शतरंज,कैरम, लूडो व ज्ञानवर्धक खेल खेले।
5. बच्चे की मानसिकता को ध्यान में रखकर उनसे परिवार मित्रों समाज के लोगों और उनसे प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रुप से जुड़े। लोगों के बारे में पूछे उन्हें यह भी पूछे कि उन लोगों का उनके प्रति कैसा रवैया है? और माता की यह ज्यादा जिम्मेदारी बन जाती है कि वह अपनी पुत्री से सखी जैसा व्यवहार करते हुए महत्वपूर्ण बिंदुओं पर मंत्रणा करें।उसे सही और गलत का आभास कराएं।
6. बच्चे के अपराधिक एवं अश्लील फिल्मों गानों एवं टीवी चैनलों से दूर रखें।
7. बच्चों के स्कूल जाकर वहां के वातावरण बच्चे के मित्र, अध्यापक एवं अन्य लोगों से संपर्क साधे। खासकर इन गतिविधियों पर नजर रखें जो बच्चे की शिक्षा में बाधा उत्पन्न करती है।
8. समय निकालकर बच्चों को महान पुरुषों की कहानियां, परिवार के संघर्षपूर्ण किस्सों, सफल एवं योग्य लोगों के बारे में बताए और उन्हें उन्हीं की राह पर चलने की प्रेरणा दें।
9. नौकरी करते हुए अपनी माता-पिता की जिम्मेदारियों से दूर ना भागे। उन्हें अपनी बात कहने और धैर्य पूर्वक उनकी बात सुनने का मौका दें।
10. किशोर बच्चों को अकेले ट्यूशन भेजने के साथ-साथ इस बात पर भी ध्यान रखें कि वह किसी गलत संगत में तो नहीं हैं। उन पर कड़ी नजर रखें। उन्हें सही मार्गदर्शन दें।
11. बच्चों को सभ्य व शालीन वस्त्र पहनने को कहें। उन्हें किसी और को आदर्श मानकर पहने जा रहे कपड़ों की जगह भारतीय सभ्यता-संस्कृति व बदलते परिवेश में सभ्य तरीके से वस्त्र पहनने को कहें।
12. बच्चों को देर रात तक पार्टियों,सिनेमाघरों में ना जाने दे।
13. परिवार के महत्व पूर्ण मोबाइल नंबर व अन्य पहलुओं पर उन्हें जानकारी दें।
14. माता-पिता बच्चों को किशोरावस्था में आने वाले बदलावों समस्याएं एवं समाधान उसे परिचित कराएं।
मेरा यह मानना है कि इन अपराधों एवं बच्चों को शोषण से बचाने में उपर्युक्त बिंदु काफी कारगर सिद्ध होंगे। आज के युग में हमें माता पिता के साथ-साथ एक अच्छे मित्र की भी भूमिका निभानी पड़ेगी। आगामी लेखों के माध्यम से मैं कुछ और बिंदुओं पर भी प्रकाश डालूंगा।