“माता की स्तुति”
“माता की स्तुति”
कितना शांत,सौम्य,ज्योतिर्मय स्वरूप है तुम्हारा
आपको खुश करें,प्राणपण से प्रयत्न है हमारा।
कहाँ तुम्हें पायें….मन उदभ्रांत सा फिरता है।
गूँजती हुई ध्वनित सिंहवासिनी की,
जय माता दी….जय माता दी….
भवधाम भी वैभव से भर जाता है।
इस वातावरण की अलौकिकता में,
अद्भूत साहस का संचार पाते हैं।
तुम्हारी कृपा से पत्ते भी हिलते हैं।
दूर अतल से नाद यह आता है,
मेरी आस्था मेरी आराधना का मार्ग
चमक उठता है……….।
कर कमलों में अक्षमाला और कमण्डलू धारे
माता का नौ स्वरूप मन को भाता है।
हम साथ मिलकर तुम्हारा आह्वान करते है।
इस दशहरें में हम अपनी बुराई का अंत करते है।
अन्याय जिधर है उधर हो तुम माँ शक्ति
हस्त दश विविध अस्त्र से हो सज्जित।
लक्ष्मी-काली-सरस्वती तुममें ही समाहित है।
मेरी इष्ट देवी तुम्हें शत-शत नमन है।
-रंजना वर्मा