मातम
नीर आंखों का दिखा मातम मनाते आजकल।
लूट का धंधा बना कर घर सजाते आजकल।
कर दिया इंसाफ फिर भी क्यों बुलाते आपको,
गीत गाकर हम सभी को वे सुनाते आजकल।
चाव से सब कुछ खिलाते अरु पिलाते हैं जहर,
खेल में सब दे दिखाई वो दिखाते आजकल।
रोज तरकीबें बताते बेझिझक संन्यास की,
धर्म की बस आड़ लेकर मुॅंह बजाते आजकल।
दिन-दहाड़े लूटते हैं आड़ सेवा की लिए ,
लोभ देकर मुफ्त का उल्लू बनाते आजकल।
डी. एन.झा ‘दीपक’ देवघर झारखंड