माटी
माटी
माटी का मोल सीखों,
उन वीर जवानों से l
जो इस पर कुर्बान हुए ,
उन हिम्मतवालों से l
मोल माटी का भारी था ,
की जान गवाँ दी इस पर अपनी l
कुछ ऐसा जज़्बा माँगती हैं ,
धरती क़ुरबानी से सींचना जानती हैं l
जो भाई बंधु डटे रहे ,
अपने हौसले जकड़े खड़े रहे ,
उनकी कहानी बतलाती है l
आसमान ने शोलो की बारिश को देखा है,
इस धरती को धवस्त ,
तो कभी बटते देखा है ,
पर आदमी माटी की कीमत को नहीं जानता ,
वो इसपर की क़ुरबानी को नहीं पहचानता l