Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
19 Oct 2019 · 8 min read

माटी है कितनी अनमोल

माटी है कितनी अनमोल ,नही है इसका कोई मोल

#पीकेतिवारी (लेखक एवं पत्रकार)

माटी की सौंधी सुगंध ना सिर्फ मन को सुवासित करती है बल्कि इसके बर्तन, खिलौने और सामग्री अगर घर में लाकर रखी जाए तो जिंदगी भी महक सकती है। मिट्टी से बनी चीजें सुख, सौभाग्य और समृद्धि की कारक होती हैं। मिट्टी का उपयोग हमारे जीवन को भाग्यशाली बना सकता है।

मौ त जैसी अनिवार्य सचाई के लिए विश्व की अनेक भाषाओं में एक जैसे शब्द हैं। इनका विकासक्रम भी एक जैसा है और अर्थछायाओं में भी ग़ज़ब की समानता है।
मिटने-मिटाने की बात दुनियाभर की अनेक भाषाओं में ‘मिट्टी’ का रिश्ता जीवन से जोड़ा जाता है मसलन- “किस मिट्टी से बने हो” जैसे वाक्यांश से यह जानकारी मिलती है कि इनसान का शरीर मिट्टी से बनता है। स्पष्ट है कि मिट्टी में जननिभाव है। मिट्टी की पूजा होती है। मिट्टी को माँ कहा जाता है। धरतीपुत्र दरअसल मिट्टी का बेटा है। दूसरी ओर मृत्यु का रिश्ता भी मिट्टी से ही है। ज़िंदा जिस्म को मिट्टी कहा जाता है तो मृत देह को भी मिट्टी कहा जाता है। “मिट्टी में मिलाना” मुहावरे में नष्ट करने, अस्तित्व समाप्त कर देने का भाव है। ‘मिट्टी उठाना’ का भाव अर्थी निकालना है। मिटना, मिटाना, मटियामेट जैसे शब्दों के मूल में मिट्टी ही है।

माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय ।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूंगी तोय ॥

हिंदी अर्थ – इस दोहे के माध्यम से कबीर जी कहते है की जिस प्रकार कुम्हार मिट्टी से बर्तन बनाने के लिए उसे रौदता है ठीक उसी प्रकार जब मनुष्य भी नश्वर हो जाता है यही यही मिट्टी से उसको दफना कर ढक दिया जाता है अर्थात समय हमेसा एक सा नही रहता है और किसी का समय कभी न कभी जरुर आता है इसलिए हमे कभी भी अपने शक्तियों पर घमंड नही करना चाहिए.

मर्दन से अमृत तक प्राकृत के मिट्टिआ से मिट्टी रूप विकसित हुआ है। मिट्टिआ का संस्कृत रूप ‘मृत्तिका’ है। मृत्तिका और मातृका की समरूपता, जो वर्ण और स्वर दोनों में नज़र आती है, पर ज़रा विचार करें। इस पर विस्तार से आगे बात होगी। संस्कृत में मृद् क्रिया है। इससे ही बनता है मर्दन जैसे मानमर्दन करना। मृद् में दबाना, दलना, रगड़ना, खँरोचना, मिटाना, पीसना, चूरना, तोड़ना, रौंदना जैसे भाव हैं। ध्यान रहे, मिट्टी मूलतः चूरा है, कण है जो उक्त क्रियाओं का नतीजा है। इसके अलावा मृद् का अर्थ भूमि, क्षेत्र, काया अथवा शव भी है। मृद् से मृदु, मृदुता, मृदुल आदि भी बनते हैं जिनमें नर्म, ढीला, हल्का, मंद, नाज़ुक, कोमल या कमज़ोर जैसा भाव है। पीसना, रोंदना दरअसल मृदु या नर्म बनाने की क्रियाएँ ही हैं। मृद् का ही एक अन्य रूप मृत है जिसका अर्थ है शव। अमृत का अर्थ हुआ अनश्वर, अविनाशी।

सेमिटिक से भारोपीय तक सामी (सेमिटिक) भाषाओं में भी यह शृंखला पहुँचती दिख रही है। संसार की प्राचीनतम और अप्रचलित अक्कादी भाषा जो अब सिर्फ़ कीलाक्षर शिलालेखों में जीवित है, में मिद्रु मिदिर्तु जैसे शब्द हैं जो मूलतः भूमि से जुड़ते हैं। मिद्रु का अर्थ है ज़मीन, इलाक़ा, धरा, क्षेत्र या पृथ्वी। इसी तरह मिदिर्तु में बाग़ीचा अथवा उद्यान-भूमि का आशय है। हिब्रू के मेदेर में कीचड़, पृथ्वी, सीरियक के मेद्रा में मिट्टी, शव, लोंदा जैसे अर्थ हैं। अरबी में एक शब्द है मदार (वृत्त वाला नहीं जिससे मदरसा बना है) जिसका अर्थ है धरती। गीज़ के मीद्र में मैदान, पृथ्वी, क्षेत्र, देश जैसे आशय प्रकट होते हैं।
मृत्तिका से मातृका तक स्वाभाविक है कि पृथ्वी का जो आदिम रूप हमारे सामने है, पृथ्वी का जो पहला अनुवभव हमें है वह उसका मिट्टी रूप ही है इसीलिए पृथ्वी की तमाम संरचनाएँ भी मिट्टी से निर्मित हैं। पृथ्वी का समूचा विस्तार जिसे हम देश या क्षेत्र कहते हैं, मिट्टी निर्मित ही है। मृद् से बनता है मृदा जिसका अर्थ है मिट्टी, धरती, पृथ्वी, देश, भूभाग, काया, मृदा, शव, बालू आदि। टीला, पहाड़, सपाट सब कुछ माटी निर्मित है। मिट्टी के सम्पर्क में आकर सब कुछ मिट्टी हो जाता है। मिट्टी ही देश है, मिट्टी ही जन्मदात्री है, मिट्टी मृत्तिका से है, मिट्टिका और मृत्तिका समरूप हैं। मृत्तिका का एक रूप मातृका भी हो सकता है। मातृ में भी पृथ्वी का भाव है और ‘माँ’ तो ज़ाहिर है। मातृका भी मिट्टी यानी माँ है। मूल ध्वनि या पद में अनेक सर्गों-प्रत्ययों और स्वर जोड़ कर अर्थ-विस्तार होता है।
मृत्- मृद्- मृन्- मृण्- गाँव दरअसल एक क्षेत्र है। देहात में गाँव के बाहर छोटी छोटी पिण्डियों में मातृकाएँ स्थापित की जाती हैं जो ग्रामदेवी का रुतबा रखती हैं। अर्थात वे गाँव की जन्मदात्री, रक्षक और पालनहार हैं। मृत्तिका में जो मृत्त है उसका रूपान्तर मृद् है जिसका अर्थ ऊपर स्पष्ट किया है। मृद् का ही एक अन्य रूप है मृण जिसमें रगड़ने, तोड़ने, दलने का भाव है और प्रकारान्तर से कण या मिट्टी का बोध होता है। मृण्मय का अर्थ होता है माटी निर्मित्त। इसका मृन्मय रूप भी है। मृत् में भी वही सारी अर्थछायाएँ हैं जो मृद् में हैं। इस तरह मृत्- मृद्- मृन्- मृण्- जैसे शब्दशृंखला प्राप्त होती है जिसमें रूपान्तर के साथ अर्थान्तर नहीं के बराबर है। मृण का अर्थ तन्तु भी है। मूल भाव सूक्ष्म, तनु, छोटा, बारीक आदि सुरक्षित है। भाषाशास्त्र के विद्वान क्या सोचते हैं, ये अलग बात है। हमने अपना मत रखा है।
मर्द और मुरदा फ़ारसी मुर्दा दरअसल मुर्दह् है। इसका संस्कृत समरूप मृत भी है और मुर्त भी। मुर्दा’/ मुरदा दरअसल मुर्दह् में जुड़े अनुस्वार की वजह से होता है। ‘ह’ वर्ण का लोप होकर ‘आ’ स्वर शेष रहता है। इस तरह देखें तो संस्कृत ‘मुर्त’ और फ़ारसी ‘मुर्द’ समरूप हैं। मृदा अगर मिट्टी यानी लाश है तो मुर्दा भी। अर्थ दोनों का ही शव है। मुर्द का ही एक अन्य रूप मर्द है। प्लैट्स इसका रिश्ता मर्त्य से जोड़ते हैं। पर संस्कृत में मर्त अलग से है। मर्द का अर्थ है आदमी, पुरुष, पति, भर्तार, बहादुर अथवा दुष्ट, नायक अथवा खलनायक, एक सभ्य व्यक्ति। दरअसल यहाँ भी बात मिट्टी से जुड़ रही है। मर्त्य यानी नाशवान। जिसे नष्ट हो जाना है। ये अलग बात है कि इसका पुरुषवाची अर्थ रूढ़ हुआ पर आशय मनुष्य (मरणशील) से ही रहा होगा, इसमें शक नहीं। मर्द से बना मर्दानगी शब्द पुरुषत्व का प्रतीक है। नामर्द का अर्थ कापुरुष होता है। मर्दुमशुमारी भी हिन्दी में जनसंख्या के अर्थ में प्रचलित है। ‘मर्दों वाली बात’ मुहावरा भी खूब प्रचलित है। आशय पुरुषोचित लक्षणों से है।
मौत के रूप मौत जैसी अनिवार्य सचाई के लिए विश्व की अनेक भाषाओं में एक जैसे शब्द हैं। इनका विकासक्रम भी एक जैसा है और अर्थछायाओं में भी ग़ज़ब की समानता है। मृद का मृत रूप ‘मृत्यु को प्राप्त’ का अर्थ प्रकट करता है। मृत्यु का अर्थ है मरण। मृतक का अर्थ शव है। फ़ारसी में मृतक को मुर्दा कहते हैं। जिस तरह मिट्टी यानी धूल, गर्द, मुरम है उसी तरह मिट्टी यानी जीवित या मृत काया भी है। मृण्मय के मृण् का अर्थ यद्यपि पीसना, दबाना, चूरा करना है साथ ही इसका एक अर्थ नाश अथवा मार डालना भी है। मृण से मरण को सहजता से जोड़ सकते हैं जिसमें मृत्यु का भाव है। हम व्याकरण की ओर नहीं देख रहे हैं।
शह, मात और मातम शतरंज का मशहूर शब्द है शह और मात। इसमें जो शह है वह दरअसल फ़ारसी शब्द है और बरास्ता पहलवी उसका मूल वैदिकयुगीन क्षय् अथवा क्षत्र है जिसमें उपनिवेश, स्वामित्व, आधिपत्य, राज्य, इलाक़ा जैसे भाव हैं। बाद में राजा के अर्थ में शाह शब्द इससे ही स्थापित हुआ। शतरंज के शह में मूलतः बढ़ने का भाव है। मगर हमारा अभीष्ठ ‘मात’ से जुड़ा है। यह जो मात है, दरअसल मौत से आ रहा है। सेमिटिक मूल क्रिया अर्थात मीम-वाओ-ता से अनेक सामी भाषाओं में बने रूपान्तरों में ‘मात’ मौजूद है जिसका अर्थ है मरण। मसलन हिब्रू, उगेरिटिक और फोनेशियन में यह मोत है। हिब्रू में ही इसका एक रूप मवेत भी है। असीरियाई में यह मुतु (मृत्यु से तुलनीय) है तो अक्कादी में मित्तुतु है। सीरियक में यह माव्ता है तो इजिप्शियन में mwt है। मृत्यु का शोक होता है सो मौत से ही अरबी में बना मातम जो हिन्दी में भी प्रचलित है।
इस विवेचना के बाद अंग्रेजी के मॉर्टल, मर्डर, मोर्ट, इम्मॉर्टल (अमर्त्य), पोस्टमार्टम अथवा मॉर्च्युअरी जैसे शब्दों को इस शृंखला से बड़ी आसानी से जोड़ कर देख सकते हैं।

हर व्यक्ति को मिट्टी या भूमि तत्व के पास ही रहना चाहिए।

वास्तुशास्त्र के अंतर्गत भी मिट्टी को महत्वपूर्ण कहा गया है। मिट्टी के घड़े से पानी पीना या घर में मिट्टी के बर्तन रखना अत्यंत लाभदायक माना गया है।

ऐसा करने से आसपास सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव बना रहता है।

लेकिन ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मिट्टी के कुछ बर्तन ऐसे हैं जो हर घर में होने ही चाहिए। जो लोग चाहते हैं कि उनके जीवन में सुख-समृद्धि और सफलता हमेशा बरकरार रहे उन लोगों को कुछ विशेष प्रकार के मिट्टी के बर्तन अपने घर में रखने चाहिए।

मिट्टी के इन उपयोगी बर्तनों में सबसे पहला नाम है घड़े का।

बहुत से परिवारों में घड़े का पानी पिया जाता है, घड़े का पानी पीने से बुध और चंद्रमा का प्रभाव शुभ होता है।

यहां तक कि विज्ञान भी यह मानता है कि घड़े का पानी सेहत के लिए अत्यंत लाभकारी होता है।

अगर आपके घर में घड़ा हैं तो इसे अपने घर की उत्तर-पूर्वी दिशा में ही रखें। यह आपके घर और आसपास के वातावरण की सभी नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करता है।

परिवार में सुख और समृद्धि के मार्ग भी खुल जाते हैं।

घर में कोई व्यक्ति तनाव ग्रस्त हैं या मानसिक रूप से परेशान है तो आप उन्हें माटी के घड़े से किसी भी पौधे को पानी देने के लिए कहें।

लस्सी और चाय कुल्हड़ में पीने का मजा ही कुछ और है, लेकिन मिट्टी से बने ये गिलास मंगल ग्रह के दुष्प्रभाव से भी मुक्ति दिलवाते हैं।

इसलिए जो लोग मंगल के कोप से प्रभावित है, उन्हें कोई भी पेय पदार्थ कुल्हड़ में ही पीने चाहिए।

हर शनिवार के दिन किसी कुल्हड़ में पानी भरकर पीपल के पेड़ के नीचे रखने से करियर में लाभ मिलेगा।

कुल्हड़ में पानी भरकर अपनी छत पर भी प्यासे पक्षियों के लिए रख सकते हैं, इससे अगर आप नौकरी की तलाश कर रहे हैं तो आपकी तलाश जल्द पूरी होगी।

मिट्टी से बनी भगवान की मूर्ति को घर में रखने से भी आपकी धन संबंधी परेशानियां तो दूर होती ही हैं, साथ ही धन की स्थिरता भी बनी रहती है।

जो लोग धन संबंधी परेशानियां झेल रहे हैं उन्हें हर शनिवार मिट्टी का दीया पीपल के पेड़ के नीचे जलाना चाहिए।

अगर किसी व्यक्ति के दांपत्य जीवन में परेशानियां चल रही हैं तो उसे नियमित तौर पर तुलसी के पौधे पर मिट्टी का दीया जलाना चाहिए।

नि:संतान स्त्री या पुरुष को चार मुंह वाले दीये में चार लौ लगाकर श्रीकृष्ण की मूर्ति के आगे प्रज्वलित करना चाहिए।

मिट्टी से बनी विभिन्न वस्तुओं या खिलौनों का ड्राइंग रूम में प्रयोग करने से धन की आवक बढ़ती है।

Language: Hindi
Tag: लेख
434 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
कहाॅ॑ है नूर
कहाॅ॑ है नूर
VINOD CHAUHAN
इतिहास
इतिहास
श्याम सिंह बिष्ट
ऐसे कैसे छोड़ कर जा सकता है,
ऐसे कैसे छोड़ कर जा सकता है,
Buddha Prakash
First impression is personality,
First impression is personality,
Mahender Singh
आज के रिश्ते
आज के रिश्ते
पूर्वार्थ
पथ प्रदर्शक पिता
पथ प्रदर्शक पिता
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
-मंहगे हुए टमाटर जी
-मंहगे हुए टमाटर जी
Seema gupta,Alwar
ढलता सूरज वेख के यारी तोड़ जांदे
ढलता सूरज वेख के यारी तोड़ जांदे
कवि दीपक बवेजा
नए दौर का भारत
नए दौर का भारत
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
गुरु बिन गति मिलती नहीं
गुरु बिन गति मिलती नहीं
अभिनव अदम्य
रंजीत शुक्ल
रंजीत शुक्ल
Ranjeet Kumar Shukla
डोमिन ।
डोमिन ।
Acharya Rama Nand Mandal
पहले देखें, सोचें,पढ़ें और मनन करें,
पहले देखें, सोचें,पढ़ें और मनन करें,
DrLakshman Jha Parimal
मैं जिससे चाहा,
मैं जिससे चाहा,
Dr. Man Mohan Krishna
एक पत्नी अपने पति को तन मन धन बड़ी सहजता से सौंप देती है देत
एक पत्नी अपने पति को तन मन धन बड़ी सहजता से सौंप देती है देत
Annu Gurjar
मुक्तक... हंसगति छन्द
मुक्तक... हंसगति छन्द
डॉ.सीमा अग्रवाल
डा. तुलसीराम और उनकी आत्मकथाओं को जैसा मैंने समझा / © डा. मुसाफ़िर बैठा
डा. तुलसीराम और उनकी आत्मकथाओं को जैसा मैंने समझा / © डा. मुसाफ़िर बैठा
Dr MusafiR BaithA
मेरे कलाधर
मेरे कलाधर
Dr.Pratibha Prakash
काश
काश
Sidhant Sharma
सत्य की खोज
सत्य की खोज
Mamta Rani
मन मंदिर के कोने से
मन मंदिर के कोने से
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
तू सरिता मै सागर हूँ
तू सरिता मै सागर हूँ
Satya Prakash Sharma
मिला जो इक दफा वो हर दफा मिलता नहीं यारों - डी के निवातिया
मिला जो इक दफा वो हर दफा मिलता नहीं यारों - डी के निवातिया
डी. के. निवातिया
लालच
लालच
Dr. Kishan tandon kranti
इल्म
इल्म
Utkarsh Dubey “Kokil”
न दीखे आँख का आँसू, छिपाती उम्र भर औरत(हिंदी गजल/ गीतिका)
न दीखे आँख का आँसू, छिपाती उम्र भर औरत(हिंदी गजल/ गीतिका)
Ravi Prakash
कैसे प्रियवर मैं कहूँ,
कैसे प्रियवर मैं कहूँ,
sushil sarna
जो तेरे दिल पर लिखा है एक पल में बता सकती हूं ।
जो तेरे दिल पर लिखा है एक पल में बता सकती हूं ।
Phool gufran
रिश्ते दिलों के अक्सर इसीलिए
रिश्ते दिलों के अक्सर इसीलिए
Amit Pandey
■ आज का विचार...
■ आज का विचार...
*Author प्रणय प्रभात*
Loading...