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17 Nov 2021 · 1 min read

“माझी” ही जब “पतवार “पर _ गजल / गीतिका

हर कोई तो अपनी बुद्धि का प्रयोग कर रहा है।
जिस काम में लगे हैं सारे फिर भी बिगड़ रहा है।
कमी कहां है उसे एकमत होकर ढूंढ नहीं पाए हम,
खुद की आत्म प्रशंसा पर गर्व हर कोई कर रहा है।।
ऐसे तो और काम बिगड़ता ही जाएगा मेरे भाई।
विचारों का तारतम्य सबका क्यों बिखर रहा है।।
उसने कहा यह करना है दूसरा आया नहीं नहीं नहीं।
देख इसे “कर्मयोगी” भी अपने कर्म से डर रहा है।।
समझ नहीं पा रहा वह आखिर उसे करना क्या है।
हर कोई तो उस पर “आदेशों “का भार धर रहा है।।
ऐसे ही चली नय्या तो इसका पार उतरना मुश्किल है।
“माझी “ही जब “पतवार “पर गौर नहीं कर रहा है।।
राजेश व्यास अनुनय

2 Likes · 2 Comments · 255 Views
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