माज़ी में जनाब ग़ालिब नज़र आएगा
आलीम शायरों के हुए फ़ाश
वो अक्सर जमींदोज़ होने के बाद
शायरों के तक़दीर का क्या
कुछ कागज़ पर दर्ज़ शेर
बादाख़ाने से बादशाहों के महफ़िल
तक तो पहुँचे
फिर भी जिंदगी गुज़र गयी
फ़क्र – फ़ाक़ा और नादारी में
आक़िल तो वो शख़्स निकले
जो उन शायरों की
बेच कर शायरी और गज़लें
दौलतमंद हो गए
पलट कर देखिये माज़ी में जनाब
ग़ालिब नज़र आएगा
हर शय में
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बादाख़ाना = शराबखाना
आलीम / आकिल = बुद्धीमान
फ़ाश = प्रसिद्ध , प्रख्यात
जमींदोज़ = दफनाने के बाद, मरने के बाद
फ़क्र / फ़ाक़ा = निर्धनता
नादारी = गरीबी
माज़ी = गुज़रा हुआ समय