माचिस
माचिस! क्या आप इन्हें जानते हैं? लगभग इस धरती पर मानव जीवन की जिंदगी जीने वाले हर एक इंसान इससे परिचित होंगे। छोटे से बड़े, बड़े से बुढ़े तक इसको पहचानते होंगे। इसका उपयोग जन्म से लेकर के जीवन के अंतिम संस्कार तक होता है।
यह बहुत छोटी सी वस्तु है। इसके पास लंबाई, चौड़ाई और मोटाई को लेकर एक आयताकार आकृति के अलावा कुछ नहीं। एक छोटी सी वस्तु छोटे से छोटे काम से लेकर के बड़े से बड़े कांड तक करता है। यह छोटी सी वस्तु संसार के प्रत्येक घर के गैस चूल्हे के ऊपर, मिट्टी चूल्हे के ऊपर, स्टोव के बर्नर पर मिल ही जाएंगे। और तो और इस आधुनिक युग में कहीं मिले या न मिले लेकिन प्रत्येक घर के देवी देवता वाले घर में अवश्य मिल जाएंगे।
इनका काम यह है कि खुद को जलकर दूसरे को जलाना। खुद को जलकर दूसरे का अंधेरा मिटाकर प्रकाश देना। इनका काम एक छोटी सी दीपक जलाने से लेकर के मोमबत्ती, अगरबत्ती के साथ-साथ अंतिम संस्कार के समय चिता में आग लगाने के लिए होता है। इस माचिस की एक छोटी सी तीली चाहे तो एक दीपक को जला सकता है और चाहे तो इस पूरे संसार को भी जला सकता है।
आप देखे होंगे की एक माचिस की बहुत सारे तिलियां होती है और उन सारी तीलियों के ऊपर एक गोलाकार मसाला चढ़ी हुई रहती है। जो एक रासायनिक पदार्थ है। उस रासायनिक पदार्थ का नाम पौटेशियम क्लोरेट है। साथ ही माचिस की डिब्बी के दोनों तरफ एक पट्टी आकार की रेड पट्टी लेप लगी हुई होती है जो लाल फास्फोरस और सल्फर जैसी रासायनिक पदार्थ की मिश्रण होती है। इसकी खूबसूरती यह है कि मात्र माचिस की डिब्बी और माचिस की तिल्ली को सही तरीके से एक दूसरे के ऊपर घर्षण किया जाए तो बस इतने ही में आग पकड़ लेती है। इस माचिस की करनी पर एक लोकोक्ति बहुत ही सूट करती है। कि “हम तो डूबेंगे सनम तुम्हें भी ले डूबेंगे” यानी “हम तो जलेंगे सनम तुम्हें भी जलाएंगे”।
चलिए, अब कुछ इसकी इतिहास के बारे में जानकारी ले लेते हैं। पहली बार माचिस बनाने का प्रयास 1680 ई० में की गई थी। उस समय राबर्ट बॉलय ने एक कागज के टुकड़े पर सफेद फास्फोरस लगाकर उसे सल्फर लगे कागज पर रखा। ऐसा करने पर उसमें आग पकड़ ली। पर पूरी तरह से माचिस बनाने में सफलता प्राप्त नहीं हुई। क्योंकि सफेद फास्फोरस बहुत ही कम तापमान पर आग पकड़ लेता है। इस तरह से माचिस काफी खतरनाक थी।
लेकिन माचिस का जो रूप आज है उसके बनने की शुरुआत 1845 ई० में की गई। जब रेड फास्फोरस की अविष्कार हो चुका था। पर फिर भी सफलता प्राप्त नहीं हुई। क्योंकि रेड फास्फोरस अपने आप आग नहीं पकड़ता है बल्कि रगड़ने पर आग पकड़ता है।
अंततः 1855 ई० में कार्ल लुंडस्टान ने पहली बार सेफ्टी माचिस स्वीडन में बनाई। जिसने तिल्ली पर पौटेशियम क्लोरेट रसायन तथा डिब्बी पर रेड फास्फोरस व सल्फर रसायन की मिश्रण का इस्तेमाल करके माचिस बनाई। माचिस की तीलियां डिब्बी पर रगड़ने से आसानी से जल उठती हैं पर अपने आप नहीं जलती, इसलिए खतरनाक भी नहीं होती हैं। जिसकी वजह से इसे सेफ्टी माचिस कहा गया।
इस तरह से हम जान गए कि माचिस की खोज कब, किसने और कहां किया? साथ ही मानव जीवन में माचिस का उपयोग कितना महत्वपूर्ण है?
——————-०००——————–
लेखक : जय लगन कुमार हैप्पी
बेतिया, बिहार।