माइल है दर्दे-ज़ीस्त,मिरे जिस्मो-जाँ के बीच
माइल है दर्दे-ज़ीस्त,मिरे जिस्मो-जाँ के बीच
उलझा हुआ है दिल ये, ग़मे-दो जहां के बीच
कोई तो है मक़ाम तिरा मर्कज़े – सजूद
खोई हुई जबीं है कई आस्ताँ के बीच
मैं छू सका न आज तलक, जिस्मे-बू-ए-गुल
कहने को यूं तो उम्र कटी गुलसिताँ के बीच
दोनों ही हैं अज़ीज़ मुझे जानो – क़ल्ब से
मत फ़र्क़ डाल हिंदी-ओ-ऊर्दू ज़ुबाँ के बीच
तुम पारखी निगाह से आसी करो तलाश
मदफ़न हैं कितने जिस्म ज़मींआसमाँ के बीच
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सरफ़राज़ अहमद आसी