मां
बिटिया की कलम से✒️
मां तुम ये सब कैसे कर लेती हो….
बचपन से देख रही हूं मैं ,सब का ध्यान रखती हो ,
फिर खुद का ख्याल रखना क्यों भूल जाती हो,
माँ तुम ये सब कैसे कर लेती हो।।
पापा की डाँट हम तक ना पहुंचे ,
उनके गुस्से को झट से रोक लेती हो..,
उनकी खरी-खोटी भी बड़ी शांति से सुन लेती हो,
माँ तुम ये सब कैसे कर लेती हो…….
हमारे हर शौक को तुम पूरा करती हो ,
फिर खुद के शौक को क्यों भूल जाती हो…,
माँ तुम ये सब कैसे कर लेती हो………
हम सब के चेहरे की हंसी देखकर ही , तुम खुश हो जाती हो,
जोडें जो पैसे अपनी साड़ी के लिए ,
फिर उनसे “मेरी ड्रेस” क्यों ले आती हो ,
माँ तुम ये सब कैसे कर लेती हो।।
लेखिका:- दर्शना बांठिया ?